हम में से बहुतों को छोटी उम्र से ही बताया जाता है कि झूठ बोलना गलत है और हमें हमेशा सच बोलना चाहिए, पर हम किसी न किसी अवस्था में अपने आप को ऐसी स्थिति में पाते है जिसमे में हम किसी कारण से झूठ बोलते हैं.
और इस तरीके से हमें बचपन से सिखाये जाने वाले इस golden rule की हम उलंघना करते हैं. शायद हम सब से कभी न कभी अपना homework न कर के आने के लिए भी झूठ बोला होगा और कोई न कोई झूठा कारण बनाया होगा या फिर parents को झूठ बोला होगा अपने friends के साथ cricket खेलने के लिए जब हमें कुछ और करना होता है.
जैसे जैसे हम बड़े होते है हम realize करते हैं कि दुनिया black-and-white नहीं है, और बईमानी दिखये बिना नहीं चलता, यह दुनिया की grayness में से move करने का एक excuse है.
मैंने एक बार यह quote पढ़ा था:
“Being nice to someone you don’t like is not being two-faced, it’s a sign that you have become mature.”
हिन्दी में अर्थ – “किसी के साथ अच्छा होने का ये अर्थ नहीं कि आपके दो face हैं, यह एक संकेत हैं कि आप mature हो गएँ हैं.”
मुझे इस quote ने बहुत प्रभावित किया. मैंने पक्का सोचा – यही कारण है कि लोगों का जीवन में बढ़िया connection क्यों हैं – वह दूसरों के लिए nice हैं. समय के साथ मुझे ही लगा कि शायद ये सबसे बेकार quote था जिसमे मैंने अपने आपको विश्वास करने के लिए उत्साया था.
जितने भी हम बहुत से excuses (बहाने) अपनी रोज़ की जिंदगी में देते हैं वह असल में झूठ होते हैं और हमें अपने जीवन में कहीं न कहीं से अपना रास्ता बनाने के लिए उन्हें use करते हैं.
हम यह realize नहीं करते कि हमरा minor, छोटा छोटा झूठ बोलना एक झूठ बोलने की आदत में ही बदल जाता है और हम इस स्वभाव को rationalize करना continue रखते हैं और इसे अपनी रोज़ की जन्दगी में employ करते हैं. यह जिंदगी का एक तरीका बन जाता है!
Eventually हम अपने आप को झूठ बोलना शुरू कर देते हैं, और हम अपने आप को ही confuse कर डालते हैं कि क्या सच है और क्या झूठ है. यह process innocently (मासूमियत से) शुरू होता है.
हमें सुबह 8:00AM उठाना पक्का करते हैं, पर हम अपने आप को अतिरिक्त 15 minutes की rest देने का excuse देते हैं. और फिर हमें 30 minutes का excuse बनाते हैं और बहुत जल्दी हम इस procrastination की कला में निपुण हो जाते हैं और फिर हम excuse बनाने लग जाते हैं कि हमारा काम complete क्यों नहीं है.
Eventually हमें पता लगता है कि हम जिंदगी में वहां नहीं है जहाँ हमें होना चाहिए और फिर हमें इसका पता नहीं चलता कि हम इस static place में कैसे आ गये और हमने अपना बहुत सारा समय और मौका गवा दिया.
एक हफ़्ता बिना झूठ बोले, और future के लिए मेरी commitment:
मैंने कभी झूठ नहीं बोला, पर मैं हर किसी को हर चीज़ के लिए बहुत सारे excuses बनाये. मैंने इससे पहले कभी भी यह realize नहीं किया कि कैसे छोटे छोटे बहाने इतनी जल्दी एक गंदी आदत में बदल जाते है और इससे पहले कि मैं यह जानता मैं एक झूठा बन चुका था.
पिछले हफ्ते मैंने एक stand लेने का निश्चय किया. मैंने अपने आप को और किसी भी अन्य व्यक्ति को झूठ न बोलने का निश्चय किया. इस plan में जाने पर, मुझे पता था कि ऐसे भी लोग होंगे जिनकी भावनाओं को ठेस पहुंचेगी, पर मैंने यह देखा कि एक कडवा सत्य हमेशा एक मीठे असत्य से बढ़िया होता है.
पीछे हफ्ते जो कुछ भी मैंने किया उसमे मैं पूरण रूप से ईमानदार था. मुझे नहीं पता कि इस एक हफ्ते के experiment का सही impact क्या है, पर मैंने ये realize किया कि अब मैं अपने आप पर और शक नहीं करता.
मैं अपने thoughts और फैंसलो पर सवाल नहीं उठाता क्योंकि वह शब्दों जैसे कि “पर”, और “या” आदी से filtered या quantified नहीं है. परिणाम स्वरूप, मुझे अपने आप में अधिक confidence लगा.
हर छोटी चीज़ के लिए excuses बनाने की जगह, मैंने अपने आस-पास सभी की साथ ईमानदार रहना शुरू कर दिया. (अपने आप से भी)
यह transition भी ज़रा मुश्किल था, जैसे life के और transitions होते हैं, पर 24 hours x 7 days के बाद मैं कह सकता हूँ यह experiment पूरण रूप से काम किया.
मैं आपको suggest करता हूँ कि आप भी इस experiment को अपनी life में करने का effort उठाईये. कम से कम एक हफ्ते के period के लिए ईमानदार रहने की कोशिश कीजिये और देखिये कि इससे आपकी life में क्या impact पड़ता है.,
इस concept के बारे में मैं आने वाले दिनों में आपके साथ और share करूँगा और आपको बताऊंगा कि यह छोटा परिवर्तन मेरे लिए कैसे काम कर रहा है.
Wiki Hi says
वाह सर, मजा आ गया आपका पोस्ट पढ़कर. वास्तव में काफी प्रेरणादायक है आपकी ये कहानी 🙂
Sufyan says
bahut badiya post hai harsh sir.
Aapki post padhke me bhot impress hogya hu 🙂
हर्ष अग्रवाल says
Hey Sufyan,
Dhanyavaad.
roshan Lotan says
ईमानदार होना कठिन है क्योंकि यह हमें अपनी गलतियों को स्वीकार करने के लिए मजबूर करता है ईमानदारी वह गुण है, जो लोगों के मन की अच्छाई को दर्शाती है। यह जीवन में स्थायित्व और बहुत सी खुशियाँ लाती है.
Ravi kumar sahu says
जैसे जैसे हम बड़े होते है हम realize करते हैं कि दुनिया black-and-white नहीं है, और बईमानी दिखये बिना नहीं चलता, यह दुनिया की grayness में से move करने का एक excuse है.
is article me , Ye point mujhe achhi lagi .
Sanjay Singh Rawat says
Hi Harsh Sir,
Really aapke dwara likhi gai is post se mujhe bahut seekh mili!!! Meri dua hain ki aap ese hi bloggers ki help karte rahe aur aage badte rahe…
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(^_^) All The Best (^_^)
हर्ष अग्रवाल says
Dhanyavaad Sanjay
Ravi parwani says
nice post sir, aur isse kya kya parivartan aye apki routin me , kyunki yeh bat sunnne me acchhi
lagti hai,karna utna hi mushkil, is bat ko main bhi try karke dekhoonga.
Bishal Bhati says
“Saty pareshan ho sakta hai kintu parajit nahi”, sir ji nice motivational post hai
Nikhil Jain says
अगर हम हमेशा के लिए सच बोलना सीख जाये तो जिंदगी की आधी tensions और problems हमे कभी face करनी ही नहीं पड़ेगी, क्योंकि कितनी मुश्किलें तो हमे हमारे झूठ बोलने के कारण ही उठानी पड़ती है।
काफी अच्छा article लिखा आपने।
विष्णु कान्त मौर्या says
बहुत ही बढ़िया artical है।
मैंने एक quote पढ़ा था सच परेशांन हो सकता है परन्तु पराजित नहीं ।
हम अगर सच बोलने का अगर थोडा थोडा practice करे तो ये हमारे जिंदगी में काफी बदलाव ला सकता है।
Virendra maurya says
aapki post padhkr mujhe bahut achha laga. sir thank you so much